आख़िरी संघर्ष

15-08-2022

आख़िरी संघर्ष

नीरज शारदा (अंक: 211, अगस्त द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

ये राह है कटी फटी, 
कि रूह यूँ गिरी पड़ी, 
हर घाव में यूँ पीर है
जो दिल ज़मीर चीर दे। 
 
लहू लुहान जिस्म है, 
लड़खड़ाते पाँव हैं, 
फड़फड़ाती धड़कनें, 
और ख़ून का रिसाव है। 
 
कोई राह ज्यों दिखती नहीं, 
ऑंखें अब सिसकती नहीं, 
चल पाने की उम्मीद छोड़, 
ये रूह अब घिसटती नहीं। 
 
ना साँसों में है ज़िन्दगी, 
ना शर्म का लिबास है, 
बस दर्द ही से अब मेरे 
वुजूद का एहसास है। 
 
कुछ आग है बची अगर
रख उसे समेट कर, 
फिर जगा उम्मीद को
थपथपा कर पीठ पर। 
 
हो आख़िरी ही ये भले
तू साँस कुछ उधार ले, 
सुन सके तू ख़ुद तो ऐसी
आख़िरी दहाड़ दे। 
 
कि हो खड़ा जो क्या हुआ
वो आख़िरी ही बार हो, 
हर बूँद रक्त बह चले, 
फिर आख़िरी ललकार हो। 
 
फिर धूल में भी जो गिरे 
तब धूल को भी ज्ञान हो, 
तेरी हस्ती का तेरे बाद भी
उस धूल को अभिमान हो। 

1 टिप्पणियाँ

  • 21 Aug, 2022 08:07 PM

    सुंदर प्रस्तुति।

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