आख़िरी चाय

01-10-2021

आख़िरी चाय

शुभ्रा ओझा (अंक: 190, अक्टूबर प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

अगले दिन दोपहर दो बजे की इंडिया जाने वाली फ़्लाइट थी, इसलिए अदिति ने अपनी फ़ाइनल पैकिंग कर ली और सभी सूटकेस एक साइड में लगा दिए। उसने अपने हैंडबैग में डायमंड की अँगूठी रखी, जो उसने अपनी माँ के कहने पर अपने होने वाले मंगेतर रूपेश के लिए ख़रीदी थी। यह सब करते हुए शाम के सात बज चुके थे तो अदिति ने डिनर के लिए किचन का रुख़ किया, तब उसे ध्यान आया चार हफ़्तों के लिए इंडिया जाने के चक्कर में उसने फ़्रिज में रखी सारी हरी सब्जियाँ ख़त्म कर दी थीं, तो उसने अपने लिए चाय गैस पर चढ़ाई और किचन से बाहर आकर काउच (सोफ़ा) पर बैठ गई। थकान की वज़ह से अदिति को नींद आ रही थी लेकिन साथ में भूख भी लगी थी, तो वह चाय बनने का इंतज़ार करने लगी ताकि वो चाय के साथ कुछ बिस्किट खाकर सो सके।

वैसे तो अदिति को शिकागो में आए पाँच साल पूरे हो चुके थे, लेकिन अभी भी उसे कॉफ़ी से ज़्यादा अपने देश की चाय ही पसंद थी। यहाँ तक कि ऑफ़िस में भी अदिति चाय घर से बना कर ले जाती थी।

वक़्त के साथ-साथ बहुत कुछ छूट जाता है, कुछ रिश्ते, कुछ जगहें, कुछ वादे और कुछ सपने, बस कुछ नहीं छूटता तो वह है, कुछ पुरानी आदतें। बस, अदिति को चाय पीने की कुछ ऐसी ही पुरानी आदत थी।

एक दिन लंच टाइम में अदिति लंच के बाद चाय पी रही थी कि तभी उसका कलिग पारकर आ गया तो अदिति ने उसे भी इंडियन चाय ऑफ़र की, तो पारकर ने अदिति के साथ पहली बार देशी चाय पी और अदिति से कहा, “इट्स अमेज़िंग”।

पारकर अदिति के साथ ही काम करता था, और कुछ महीने पहले ही उसके पड़ोस में शिफ़्ट हुआ था। वैसे तो अदिति उससे अधिकतर ऑफ़िस के बारे में ही बातें करती थी लेकिन जब से वो उसका पड़ोसी बना, तो कभी-कभी उसके पर्सनल लाइफ़ के बारें में भी बातें हो जाती थीं। उन्हीं बातों से अदिति को पता चला कि पारकर तलाक़शुदा हैं। वैसे तो पारकर बहुत ही स्मार्ट था, लेकिन अदिति अपनी तरफ़ से पारकर को सिर्फ़ अच्छा दोस्त ही समझती थी, पर कभी- कभी अदिति को लगता कि पारकर दोस्त से कुछ ज़्यादा हक़ उसपर जता रहा और जब चाहे चाय के बहाने वक़्त–बेवक़्त घर आ जाता।

बिन बाप की बच्ची अदिति को अपने परिवार के हालातों का अंदाज़ा था, कि कैसे उसने घर वालों से संघर्ष करके अमेरिका में जॉब करने के लिए अपना देश छोड़ा था। उस समय उसकी माँ को घर के लोगों से कितना सुनना पड़ा था, ” कुँवारी लड़की को परदेश भेज रही हो, किसी गोरे के साथ ही लौटेगी।” माँ ने किसी की ना सुनी और अदिति को शिकागो भेज दिया। माँ के साथ अदिति का रिश्ता बेटी का कम और दोस्त का ज़्यादा था। पापा के जाने के बाद अदिति ने माँ को एक मज़बूत महिला की तरह दुनिया से लड़ते देखा था। कहते हैं कि एक औरत का सबसे बड़ा हितैषी कोई होता है, तो वो उसका मायका होता है। लेकिन अदिति के माँ के लिए ना मायका अपना था और ना ही ससुराल। अदिति के पापा के देहांत के बाद जैसे रातों-रात सारे रिश्ते बदल गए हो। किसी ने अदिति के माँ का साथ नहीं दिया, यहाँ तक कि अदिति के मामा और नानी ने भी यह कह कर ख़ुद का पल्ला झाड़ लिया कि “कोई क्या कर सकता है जब यही भाग्य में लिखा था।” उस समय अदिति ने बारहवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की थी, जब उसके पापा इस दुनिया को छोड़कर चले गए थे, तो सभी नात-रिश्तेदारों ने अदिति की शादी करके बोझ कम करने की सलाह अदिति के माँ को दे दी। अदिति की माँ ने अदिति को ख़ूब पढ़ाया और जॉब करने के लिए परदेश भी भेज दिया। अदिति अपने क्षेत्र– जवार की पहली बेटी थी जो शादी से पहले विदेश में जाकर नौकरी कर रही थी। पिछले छः महीने से अदिति की सगाई की बात उसके घर में चल रही थी, और शादी की तारीख़ भी तय कर दी गई थी। दो हफ़्तों के अंतराल पर सगाई और शादी की तारीख़ थी, इसी वज़ह से एक महीने की छुट्टी पर अदिति इंडिया अपने घर जाने की तैयारी कर रही थी।

तभी अचानक डोर बेल की आवाज़ से अदिति उठ बैठी, उसे लगा जैसे उसकी आँख लग गई थी। वह उठी और दरवाज़ा खोलकर देखा तो सामने पारकर खड़ा मिला।

“मुझे पता चला कि तुम कल सुबह इंडिया जा रही हो, वो भी शादी करने। मुझे बताया क्यों नहीं?”

“पारकर तुम एकदम सही समय पर आए हो, पता है मैंने अभी अपने लिए चाय बनाई। चलो हॉफ-हॉफ कप चाय साथ में पीते हैं।”

“अभी चाय पीने का मूड नहीं है अदिति, पहले तुम यह बताओ कि तुमने शादी का फ़ैसला कैसे ले लिया, वो भी उस इंसान के साथ जिसे तुम जानती भी नहीं।”

अदिति ने पारकर को बैठने का इशारा किया और किचन से दो कप चाय ले आई। चाय की तरफ़ ध्यान न देते हुए पारकर बोला, “मुझे पता चला कि शादी के बाद तुम्हारा हसबैंड भी तुम्हारे साथ यहीं आ जायेगा।”

“हाँ, उसका नाम रूपेश हैं। मैं उसे ज़्यादा तो नहीं जानती लेकिन माँ उसे जानती है, माँ को वह बहुत अच्छा लगता है।”

“मतलब तुम अपने पसंद से नहीं, अपनी माँ की पसंद से शादी कर रही हो।”

“पारकर हमारे वहाँ ऐसा ही होता हैं, शादी के बाद ही प्यार शुरू होता हैं। तुम परेशान ना हो मेरी शादी के बाद भी हमारी दोस्ती ऐसी ही रहेगी। तुम जब चाहो मेरे घर आकर अपने पसंद की चाय पी सकते हो।” 
अदिति के बात को लगभग अनसुना करते हुए पारकर बोला, “अदिति, आज मैं तुमसे कुछ पूछना चाहता हूँ?”

“क्या?”

“क्या तुम मुझे पसंद करती हो ?”

“पता नहीं।”

“तुम मुझे ऐसे जवाब नहीं दे सकती, तुम्हे आज मुझे सच बताना होगा।”

“आज तुम ये कैसा सवाल पूछ रहे हो पारकर?”

“बहुत ज़रूरी सवाल है अदिति, क्योंकि मुझे तुम्हारा साथ बहुत अच्छा लगता है, तुम्हारे साथ चाय पीते हुए दुनिया-जहान की बातें करना बहुत अच्छा लगता है। तुम जब मेरे साथ नहीं होती हो, तब भी मैं तुम्हारे बारे में ही सोचता रहता हूँ, आजकल तुम मेरे साथ ना होकर भी मेरे साथ होती हो। मुझे लगता है कि मैं तुमसे प्यार करने लगा हूँ।”

“यह तुम क्या कह रहे हो पारकर?”

“हाँ, मैं बिल्कुल सही कह रहा हूँ।”

“इससे पहले तो तुमने कभी कुछ नहीं कहा।”

“इससे पहले मैं तुमसे क्या कहता अदिति, मैं डरा हुआ था। मुझे पता था कि हमारे बीच दो देशों की सभ्यता और संस्कृति की एक बहुत बड़ी दीवार खड़ी है, जिसे मैं चाह कर भी अकेले पार नहीं कर सकता। अब जब मुझे पता चल गया कि तुम शादी करने जा रही तो मैंने सोचा क्यों न एक बार तुम्हारे दिल का भी हाल जान लूँ कि तुम मेरे बारे में क्या सोचती हो।”

पारकर की बातें सुनकर अदिति का दिल ज़ोर से धड़कने लगा। वो ख़ुद को सम्हालते हुए काउच पर बैठ गई।

कभी-कभी हम जिन बातों से बचने की कोशिश करते हैं, वो बातें ख़ुद चलकर हमारे दरवाज़े पर दस्तक देने लगती हैं। कुछ ऐसा ही अदिति के साथ हो रहा था, उसे पारकर के दिल में क्या चल रहा, इस बात का थोड़ा बहुत अंदाज़ा था, लेकिन वो सारी बातें ऐसे अचानक उसके सामने आ जाएँगी, ये उसने कभी सोचा नहीं था।

अदिति के कुछ बोलने से पहले ही पारकर ने कहा, “मुझे तुम्हारा जवाब सुनने की कोई जल्दी नहीं है अदिति, तुम पूरा समय लो, लेकिन एक बार सोचो कि तुम जो ये शादी करने जा रही वो सही है या नहीं।”

यह कहकर पारकर बिना चाय पिए ही अदिति के घर से बाहर चला गया।

अदिति जो अभी थोड़े देर पहले थकी हुई सी नींद के आग़ोश में थी, अब उसके आँखो से नींद कोसो दूर थी। पारकर की एक-एक बात उसके कानों में गूँज रही थी। अब वो सिर्फ़ सही और ग़लत के बारे में सोच रही थी। पिछले छह महीनों से अदिति के जीवन में जो कुछ हो रहा था वो सारे सीन एक-एक करके मूवी की तरह उसके आँखो के सामने आने लगे।

पिछले छह महीनों में अदिति ने कई बार रूपेश से बात की, लेकिन उन बातों में उसे प्यार तो कहीं नहीं दिखा। रूपेश जब भी बात करता तो वो अदिति के बारे में कम और अमेरिका के बारे में ज़्यादा बातें करता। अमेरिका के स्टेटस के बारे में तो कभी मौसम के बारे में और कभी राजनीति के बारे में, बस कुल मिलाकर सिर्फ़ एक बात “अमेरिका”। तो क्या इसका मतलब यह हुआ कि रूपेश मुझसे शादी इसलिए करने जा रहा कि वो मेरे साथ शिकागो आ सके।

उसी पल अदिति को एहसास हुआ कि उसकी शादी होने जा रही है, लेकिन इक नई नवेली दुल्हन की तरह कोई भी फ़ीलिंग उसे क्यों नहीं हो रही? वो परदेश से वापस अपने देश जा रही लेकिन अपने देश में जाने की ख़ुशी क्यों नहीं हो रही? रूपेश से फोन कॉल पर बात करने वाली अदिति को उससे मिलने की कोई एक्साइटमेंट क्यों नहीं है?

ऐसे कई सारे सवाल अदिति के सामने आकर खड़े हो गए, उन सवालों के जवाब ढूँढ़ने के लिए उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वो क्या करे? दिल और दिमाग़ आपस में उलझे पड़े थे और सुलझने का नाम नहीं ले रहे थे। अदिति जब कभी बहुत परेशान होती तो अपनी माँ से बात करती, उसे लगता उसकी माँ के पास उसके सभी परेशानियों का हल ज़रूर होगा।

आज भी अदिति ने वही किया सबसे पहले उसने ख़ुद को थोड़ा सम्हाला फिर अपनी माँ को कॉल कर दिया।

“हैलो मम्मी, प्रणाम।”

“हैलो बेटा, ख़ुश रहो। अभी तक सोई नहीं? पैकिंग हो गई?”

“हाँ मम्मी, पैकिंग हो गई लेकिन ना जाने क्यों नीद नहीं आ रही।”

“क्यों बेटा ? सब ठीक है ना।”

माँ के मुँह से ये सुनते ही अदिति के आँखो में आँसू आ गए, उससे कुछ बोला नहीं जा रहा था किसी तरह उसने बोला, “पता नहीं क्यों मम्मी, कुछ अच्छा नहीं लग रहा।”

“क्या हुआ है बेटा, प्लीज़ मुझे बताओ।”

अदिति ने अपने आँसू पोंछे फिर एक लम्बी साँस लेकर बोलना शुरू किया, "मम्मी, अगर मैं आपसे कहूँ कि मुझे रूपेश से शादी नहीं करनी तो आप मुझसे ग़ुस्सा तो नहीं होंगी ना।”

“क्यों? क्या बात हो गई अदिति बेटा, पहले मुझे ये बताओ तुम वहाँ ठीक हो ना? तुम्हारी आवाज़ से मुझे लग रहा तुम ठीक नहीं हो। क्या हुआ है बेटा, मुझे साफ़-साफ़ बताओ।”

“मम्मी, एक बंदा है जो कि मेरे साथ मेरे ऑफ़िस में काम करता है उसने मुझसे आज कहा कि वो मुझसे प्यार करता है।”

“और तुमने उससे क्या कहा अदिति?”

“कुछ नहीं माँ, मैं उसे लेकर थोड़ी कन्फ़्यूज़ हूँ। मैं उसे अपना बहुत अच्छा दोस्त मानती हूँ, उससे प्यार करती हूँ या नहीं, मुझे कुछ पता नहीं।”

“बेटा, हम औरतें दुनिया के सभी काम करती है, घर में खाना बनाने से लेकर स्पेस में रॉकेट उड़ाने तक, जीवन के किसी भी फ़ील्ड में फ़ैसला लेने में कभी भी कन्फ़्यूज़ नहीं होती, लेकिन जब बारी हमारे प्यार की आती है तो हम कन्फ़्यूज़ हो जाती हैं।”

“मम्मी, आप समझ नहीं रही हैं।”

“मैं सब समझ रही हूँ बेटा, तुम भी उसे प्यार करती हो। बस, इस बात को तुम मान नहीं रही।”

“मम्मी बात यहाँ मेरे मानने की नहीं है। वो एक अमेरिकन है, दूसरे धर्म, दूसरी सभ्यता संस्कृति में पला-बढ़ा इन्सान, जिसे हमारे समाज में “गोरा” कहा जाता है। मैं यह बिल्कुल नहीं चाहती कि मेरे किसी भी फ़ैसले से घर वालों से आपको भला बुरा सुनना पड़े।”

“अदिति, तुम किस घर वालों की बात कर रही हो। वो जिन्होंने तुम्हारे पापा के जाते ही अपने रंग दिखा दिए। मेरी खुद की माँ ने मेरा साथ नहीं दिया क्योंकि मैंने उनके बेटों को अपने घर का मालिक नहीं बनने दिया। आज अगर मेरे पास सरकारी नौकरी नहीं होती तो मैं न तुम्हें पढ़ा पाती, न ही किसी लायक़ बना पाती। बेटा, अब मैंने लोगों के बारे में सोचना बंद कर दिया है, तो तुम भी वही करो जो तुम्हें सही लगता है। ज़िन्दगी तुम्हारी है तो फ़ैसला भी तुम्हारा ही होना चाहिए।”

“लेकिन मम्मी, रूपेश आपकी पसंद का लड़का था। आपने तो उसके साथ मेरी कुंडली भी मिलवा ली थी। अब उसका क्या होगा।”

“कुंडली तो मेरी माँ ने भी तुम्हारे पापा के साथ मिलवाई थी, क्या हुआ? वक़्त से पहले ही तुम्हारे पापा मुझे छोड़ के चले गए। तुम यह सब बेकार की बातें ना सोचो अगर तुम्हें लगता है कि वो लड़का तुम्हारे लिए रूपेश से बेहतर है, तो तुम उसके साथ अपने जीवन की शुरुआत करो।”

“मम्मी, उसका नाम पारकर है। ऐसा मुझे लगता है कि वो मुझे बहुत प्यार करता है, लेकिन एक प्रॉब्लम है।”

“वो तुम्हे प्यार करता है, तुम उसे प्यार करती हो फिर प्रॉब्लम क्या है ?”

“माँ, वो डायवोर्सी (तलाक़शुदा) है।”

“ये उसने तुम्हें कब बताया?”

“शायद, बहुत पहले। मुझे सही से याद नहीं। क्यों क्या हुआ?”

“अगर उसने यह बात तुमसे बहुत पहले ही बता दी थी, तो इसका मतलब है कि उसने अपने बारे में कोई भी बात तुमसे छुपाई नहीं। इससे यह पता चलता है कि वो एक सच्चा इंसान है।”

“लेकिन मम्मी, हमारे समाज में अभी भी एक तलाक़शुदा इंसान से शादी करना बहुत बड़ी बात है, वो भी अगर अमेरिकन हो।”

“शादी के रिश्ते में जब कोई दो इंसान एक साथ नहीं रहना चाहते तो वो अलग हो जाते है इसी को तलाक़ का नाम दिया गया है, लेकिन अफ़सोस दुनिया के किसी भी संविधान में पति-पत्नी को छोड़कर किसी और रिश्ते में तलाक़ की भूमिका का वर्णन नहीं किया गया है। नहीं तो सबसे पहले मैं अपनी माँ और दोनों भाइयों से तलाक़ लेती, जिनसे मेरा रिश्ता होते हुए भी अब सब कुछ ख़त्म हो गया है।”

“मम्मी, मुझे नानी और मामा के बारे में सब पता है, इसलिए ही मुझे डर लग रहा कि वो लोग आपको ज़रूर सुनाएँगे कि मैंने एक गोरे से शादी कर ली।”

“बेटा, मैं बचपन से अपनी माँ की हर बात मानती आई हूँ, उन्होंने जिससे कहा उससे शादी की। भाइयों को पढ़ाने में मदद के लिए बोली तो मैंने वो भी किया। कई सालों तक अपने पास रखकर भाइयों को पढ़ाया और वही भाई जब पढ़-लिखकर अधिकारी बन गए तो अब मुझसे बात तक नहीं करते। रक्षाबंधन के दिन मैं राह देखती रहती हूँ, लेकिन कोई भाई मेरे दरवाज़े तक नहीं आता और ना ही कोई फोन करता हैं। जिन रिश्तों को ख़ुश करने के लिए मैंने अपनी एक पूरी उमर लगा दी फिर भी उन रिश्तों को संतुष्ट नहीं कर पाई, उन खोखले रिश्तों की तुम क्यों परवाह कर रही हो अदिति?”

“मम्मी, आप सच में बहुत मज़बूत है।”

“अदिति, मैं चाहती हूँ कि तुम मेरे अतीत से कुछ सीखो, वो ग़लतियाँ तुम बिल्कुल ना करो जो मैंने की हैं। अपनी ख़ुशी के बारे में न सोचते हुए मैंने सिर्फ़ अपनी माँ और भाइयों के बारे में सोचा, लेकिन आज किसी भी रिश्ते को न मेरी ख़ुशियों की ज़रूरत हैं और ना ही मेरी। मैंने रिश्तों को बहुत क़रीब से रंग बदलते हुए देखा है, इसलिए तुमसे कहती हूँ कि रिश्तों के मिज़ाज को समझना छोड़ो और अपनी ख़ुशियों के बारे में सोचो।”

“लेकिन मम्मी आप रूपेश के फ़ैमिली से क्या कहेंगी?”

“वो तुम मुझ पर छोड़ दो और तुम जाकर पारकर से बात करो।”

“मम्मी, आप दुनिया की बेस्ट मम्मी हो।”

अदिति ने ख़ुश होकर अपनी माँ से कहा फिर फोन रख दिया।

अपनी माँ से बात करके अदिति ख़ुद को इतना हल्का महसूस कर रही थी कि अगर उसे कहीं से दो पंख मिल जाते तो वो उसी समय उड़ कर पारकर के पास चली जाती।

खुली आँखों से अपने आने वाली ज़िन्दगी के सुनहरे सपने देखते हुए कब सुबह के छह बज गए, अदिति को पता ही नहीं चला। अलार्म की आवाज़ से वो उठी और अपनी सुबह की दिनचर्या में व्यस्त हो गई।

आठ बजते-बजते अदिति तैयार होकर अपने घर बाहर निकल कर पार्किंग की तरफ़ जाने लगी। तभी पारकर की नीली कार आकर उसके पास रुकी।

“मैं ऑफ़िस के लिए निकला था, तो सोचा तुम्हे एयरपोर्ट ड्रॉप करता हुआ चला जाऊँ।”

“बहुत अच्छा किया पारकर कि तुम मुझे लेने आ गए,” कार के दरवाज़े को खोलकर पारकर के बग़ल वाली सीट पर बैठते हुए अदिति ने कहा।

“तुम्हारा सामान कहाँ है अदिति?” पारकर ने चौंकते हुए पूछा।

“ये रहा,” अदिति ने हँसते हुए पारकर को अपना बैग दिखा दिया।

“यह तो तुम्हारा लैपटॉप बैग है। तुम्हें जाना कहाँ है?”

“तुम्हारे साथ ऑफ़िस,” गियर पर रखे पारकर के हाथ पर अपना हाथ रखे हुए अदिति ने कहा।

“लेकिन क्यों?” पारकर बोला।

“क्योंकि मुझे अपने जीवन की आख़िरी चाय भी सिर्फ़ और सिर्फ़ तुम्हारे साथ ही पीनी है, और उसकी शुरुआत आज से ही करनी है। तो चलें . . ."

थोड़ी देर बाद वो नीली कार ऑफ़िस वाली रोड पर गुनगुनाती हुई जा रही थी।

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