तुम्हारी तरह झूठ गर हम भी बोलें
राज़दान ’राज़’तुम्हारी तरह झूठ गर हम भी बोलें
तो तुम ही कहो तुमको कैसा लगेगा
किसी और के चुपके चुपके से हो लें
तो तुम ही कहो तुमको कैसा लगेगा
करें पहले ग़लती दें धोके भी तुमको
मगर कोई अपनी ख़ता भी ना मानें
और ऊपर से हम अपनी पलकें भिगो लें
तो तुम ही कहो तुमको कैसा लगेगा
वो यादों के क़समों के सारे फ़राइज़
खिलौने समझ कर जो सब तुम ने तोड़े
उन्हीं गर फ़राइज़ से हम हाथ धो लें
तो तुम ही कहो तुम को कैसा लगेगा
नशे में जवानी के तुम झूमते हो
हमारी तुम्हें कोई परवाह नहीं है
अगर हम यह ग़म अपना मय में डुबो लें
तो तुम ही कहो तुम को कैसा लगेगा
जो ‘राज़’ हमने अपने बताए थे तुमको
बताकर ज़माने को तश्हीर कर दी
अब हम भी तुम्हारे अगर राज़ खोलें
तो तुम ही कहो तुम को कैसा लगेगा
(संग्रह-राज़-ए-ग़ज़ल)