तुलसी के राम

06-11-2016

तुलसी के राम

अच्युत शुक्ल

"तुलसी काशी के मंदिर के बाहर बने चबूतरे पर बैठ कर संत रैदास के द्वारा गुनगुनाया जाने वाला भजन गा रहे है -

प्रभु जी तुम चन्दन हम पानी
जाकी अंग अंग बास समानी।"1

तुलसी के राम और राम के तुलसी। तुलसी को राम की हर एक चीज़ से प्यार है - राम का रूप, स्वरूप, कथा, जीवन, सुख, दुःख। तुलसी अगर कहते हैं कि - होइहै वही जो राम रचि राखा, तो कुछ ग़लत नहीं है। क्योंकि तुलसी के राम की ख़ास बात यही है कि वे सर्वशक्तिमान होते हुए भी मर्यादापुरुषोत्तम हैं। तुलसी का उनपर पूरा भरोसा है।

 तुलसी का मानस आज के समय का आदर्श है। उसमे कई कालजयी तत्व विद्यमान हैं। तुलसी ने अपने राम का साथ कभी नहीं छोड़ा, तो प्रभु ने भी अपने भक्त को निराश नहीं किया।

राष्ट्रपिता बापू ने जिस रामराज्य की कल्पना की थी तुलसी का मानस उसकी आधारशिला है। तुलसी का यह मानस विश्व के 100 सर्वश्रेष्ठ काव्यों में 46वें स्थान पर है। यह भारतीय संस्कृति का प्रतिमान है।

"मानस की रचना हो चुकी है और काशी के अन्य कवि इसका विरोध कर रहे हैं, सब कविगण तत्कालीन महापंडित मधुसूदन स्वरस्वती के पास मानस को लेके जाते है महापंडित आशा के विपरीत कहते हैं कि -

काशी के आनंद वन में तुलसीदास साक्षात् चलता फिरता तुलसी का पौधा है। उसकी काव्य मंजरी बड़ी ही मनोहर है, जिस पर श्रीराम रूपी भँवरा सदैव मँडराता रहता है।"2

यूँ तो तुलसी ने अन्य कई काव्यग्रंथों की रचना भी की पर मानस सबसे लोकप्रिय है। तुलसी का मानस संघर्षों में रचित है।

"काशी के सब कवि बाबा विश्वनाथ के मंदिर में जाकर सबसे ऊपर वेद, फिर शास्त्र फिर पुराण और अंततोगत्वा मानस को सबसे नीचे रखकर द्वार बंद करके चले जाते हैं। सुबह द्वार खोलते ही मानस सबसे ऊपर रखा मिलता है। सब कवि तुलसी की महिमा का जान जाते हैं और उनको नमन करते हैं।"3

तुलसी की एक अन्य प्रमुख कृति है - विनयपत्रिका। तुलसी के जीवन का सार, निचोड़। सबसे प्रौढ़तम काव्य। जैसे जैसे तुलसी के जीवन का अवसान होता है तुलसी का काव्यग्रंथ विनयपत्रिका पूर्ण होता चला जाता है।

तुलसी को अब तक अपने जीवन में राम के दर्शन नहीं प्राप्त हो सके थे, हालाँकि हनुमान उनके स्वप्न में कई बार आ चुके थे और उनके साक्षात् दर्शन का लाभ भी तुलसी उठा चुके थे पर राम के दर्शन दुर्लभ हैं। ऐसे ही किसी को राम नहीं मिलते।

"तुलसी मृत्यु शैय्या पर पड़े हुए हैं, उनके साथी उनको घेरे बैठे हैं। पूरे शरीर पर फोड़े - फुन्सी हैं। और उनमें से मवाद बह रहा है। तुलसी कराह रहे हैं और राम-राम स्वरोच्चारित कर रहे हैं।

गोस्वामी देखतें हैं - राम दरबार सजा हुआ है, सब दिखाई पद रहे हैं पर राम नहीं। तब हनुमान जी मित्र को बताते हैं - तीनों भाइयों को प्रणाम करो, जगदम्बा की चिरौरी करो और प्रभु का स्मरण करो। इधर हनुमान जी राम को बताते हैं, - प्रभु आपका एक अनन्य, अकिंचन, अविरल, अटल सेवक आपके दर्शन का अभिलाषी है। राम के दरबार में विनयपत्रिका लायी जाती है - प्रभु देखते हैं, मुस्कुराते हैं और सही का निशान लगा देते हैं।"4

राम अपने तुलसी को पाकर धन्य हो उठते हैं और तुलसी अपने राम को।

एक भरोसो, एक बल, एक आस - बिस्वास
रामरूप स्वाती जलद, चातक तुलसीदास।

तुलसी जयंती पर गोस्वामीजी को शत शत नमन।

सन्दर्भ -1,2,3 एवं 4 (अमृतलाल नागर के उपन्यास 'मानस का हंस' से)

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