शरद ऋतु
रचना श्रीवास्तवग्रीष्म में तपते
साये, जलते मन
सुलगती हवाएँ
शरद ऋतु के आगमन पे
हर्षित हो जायें
गुलाबी ठण्ड की
आहट लिए
प्रकृति का करता सिंगार
शरद ऋतु की सुषमा
है शब्दों से पार
श्वेत नील अम्बर तले
नव कोपलें फूटती है
कमल कुमुदनियों
की जुगल बंदी से
मधुर रागनी छिड़ती है
भास्कर की मध्यम तपिश
सुधा बरसाती चांदनी
धरती के कण कण में
प्रेम रस छलकाती है
मौसम की ये अँगड़ाई
विरह प्रेमियों के हृदय में
टीस सी उठाती है
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