पास तुम्हें जो पाऊँ
कमला निखुर्पाआओ न तुम
सूरज की तरह
किरण-ताज
पहनकर आज
पूरब-द्वारे
राह तकूँ तुम्हारी
आओ न तुम
रोज चाँद की तरह
होऊँ मगन
माँग- सितारे सजा
दुल्हन बनूँ
लाज से शरमाऊँ
आओ न तुम
बदरा की तरह
सावन बन
मैं रिमझिम गाऊँ
भीजे जो अंग
पुरवैया के संग
बहती जाऊँ
धक् से रह जाऊँ
पास तुम्हें जो पाऊँ।
1 टिप्पणियाँ
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वाह! मनभावन चौका!