नायाब अहसास

03-03-2016

उम्मीदें अपना दामन अब तो खुद ही खींच लेती हैं
कभी जब फ़ुर्सतों में हम तुम्हारी बात करते हैं

 

बड़े नायाब अहसासों से हुए हैं रू ब रू ओझल
लबों तक अपनी हाँ तो हम अभी तक ला नहीं पाये
हक़ीकत ये है कि हम तुम्हारी ना से डरते हैं

 

उम्मीदें अपना दामन अब तो खुद ही खींच लेती हैं
कभी जब फ़ुर्सतों में हम तुम्हारी बात करते हैं

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें