इस शहर से उस शहर, भूख को पीता रहा

15-01-2022

इस शहर से उस शहर, भूख को पीता रहा

ज्योतिष (अंक: 197, जनवरी द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

इस शहर से उस शहर, भूख को पीता रहा
मैं तो ज़िंदा था कहाँ, मैं तो बस जीता रहा
 
दर्द क्या देते भला, पैरों के वो छाले मेरे
सीने में जो ज़ख़्म था, मैं वही सीता रहा
 
प्यार से मिलता गया, हर राह का वो मील पत्थर
इनसान जब पत्थर हुए, उसका दिल ज़िंदा रहा
 
भीड़ का हिस्सा हूँ मैं, हिस्से में मेरी भीड़ है
भीड़ से होकर अलग, मैं भीड़ में शामिल रहा
 
पाओं ने बाँधे कफ़न, रुकना नहीं घर दूर है, 
पाँव था मज़दूर का, ये तो बस चलता रहा

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें