अथ श्री आलोचक कथा
अमित शर्मावे आलोचक हैं, अभी से नहीं, तभी से, मतलब जब से उनके धरती पर अवतरित होने की दुर्घटना हुई थी तब से। यहाँ तक की उन्होंने अपने अवतरित होने की भी आलोचना कर दी थी। वो आलोचना खाते, पीते, ओढ़ते और बिछाते हैं। उनकी रग- रग में आलोचना समायी हुई है। वो कर्मयोगी भी हैं, केवल कर्म करते हैं, उन्होंने आलोचना को ही कर्म बना लिया है। जिस दिन इनकी आलोचना को कोई शिकार नहीं मिलता वे स्वभक्षण करने लगते हैं। आलोचना के लिए वे गुण-दोष, समय या वार-तिथि कुछ नहीं देखते उनकी नज़र हमेशा अपनी आलोचना के "टर्नओवर" पर रहती है और वो हर बार पिछली बार से ज़्यादा उत्पादन करने का प्रयास करते हैं।
वो अपने जीवन साथी के बग़ैर रह सकते हैं लेकिन आलोचना के बग़ैर नहीं रह सकते हैं। आलोचना के साथ उनका लिव-इन रिलेशन है, आलोचना को उन्होंने अपनी पत्नी की अघोषित सौतन बना लिया है। आलोचना उनके लिए प्राण-वायु है। वे प्रकृति से भी एक तरफ़ा प्रेम करते हैं इसलिए ऑक्सीजन लेकर हानिकारक कार्बन-डाई ऑक्साइड नहीं छोड़ते, वो समाज और देश हित में हिट होने के लिए केवल और केवल आलोचना लेकर आलोचना ही छोड़ते हैं और कभी-कभी जब वृहद समाज कल्याण के लिए प्राणायाम करने की आवश्यकता आन पड़ती है तो आलोचना को बाहर या अंदर रोककर केवल बड़ी-बड़ी छोड़ते हैं।
आलोचना के बारे में वो बिलकुल नियमित हैं, कभी कोई रिस्क नहीं लेते, ना ही कोई कोताही बरतते हैं। आलोचना को उन्होंने अपने नित्य कर्म में सम्मिलित कर रखा है और आलोचना भी डॉक्टर के प्रिस्क्रिप्शन की तरह फॉलो करते हैं। सुबह धोने से पहले दो बार, दोपहर को खाने के बाद एक बार और रात को सोने के बाद तीन बार आउटरेज के साथ वे आलोचना करना नहीं भूलते हैं।
कला, साहित्य, खेल, राजनीति या फिर बॉलीवुड, ऐसा कोई क्षेत्र नहीं बचा होगा जिसको इन्होंने अपनी आलोचना से ना डसा हो। इनके द्वारा आलोचित व्यक्ति पानी भी नहीं माँगता है क्योंकि आलोचित ख़ुद पानी-पानी हो जाता है। इनकी आलोचना का नेटवर्क दूर-दूर तक फैला हुआ है, कोई भी इनकी रेंज में एक बार आ जाए तो फिर झोली भर के आलोचना पा लेता है। आलोचना के मामले में वो केवल आउटगोइंग में विश्वास रखते है, इनकमिंग मतलब स्वआलोचना के मामले में उन्हें परनिर्भरता पसंद नहीं है। इस मामले में वो बचपन से ही अपने पैरों पर खड़ा होना सीख गए थे।
हर सफल इंसान छोटी शुरुवात से ही ऊँची छलाँग भरता है, इन्होंने भी आलोचना का लघु उद्योग लगाकर अपने पैशन को प्रोफ़ेशन का रूप दिया था। आलोचना के धनी और गुणी होने के बावजूद भी उन्होंने आलोचना का "आईपीओ" निकाल आमजन को इसमें भागीदार बनाया ताकि जनता भी इस आलोचना रूपी महायज्ञ में अपनी आहुतियाँ दे सके।
देश में चाहे सूखा पड़ा हो या बाढ़ आई हो लेकिन ये हमेशा अपनी आलोचना रूपी फ़सल का बंपर उत्पादन करते हैं। क्वालिटी शब्द को उनके शब्दकोश से दीमक चट कर गए हैं इसलिए वो हमेशा क्वांटिटी को अपना हथियार बनाते हैं। इनकी आलोचना की ख्याति देश-विदेश में पहुँच चुकी है, देश-विदेश से लोग अपॉइंटमेंट लेकर इनसे आलोचना करवाने आकर अपने को धन्य मानते हैं और जो श्रद्धालु नहीं आ पाते वो स्काइप, फेसबुक, ट्विटर या वाट्सएप से आलोचना करवा कर संतुष्ट हो जाते हैं। आलोचना करने के लिए इन्होंने आदमी भी रख रखे हैं, समयाभाव के कारण छोटी-मोटी आलोचना वो उन्हीं से करवाते हैं।
आलोचना के क्षेत्र में उनकी उपलब्धियों और योगदान को देखते हुए लगता है कि वो जल्दी ही आलोचना के नोबल पर हाथ साफ़ कर लेंगे जिसकी आलोचना बाद में वो स्वयं करेंगे।
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