अपनों के बीच भी कहाँ सुरक्षित नारी है

13-03-2014

अपनों के बीच भी कहाँ सुरक्षित नारी है

रचना श्रीवास्तव

कहते हैं कि नारी ताड़न की अधिकारी है
जनमा तुम को जिसने वो भी एक नारी है

गाँव की पगडंडी हो या शहर का परिवेश
हर ओर ही नारी का शोषण जारी है

गैरों की बात क्या करना दोस्तो
अपनों के बीच भी कहाँ सुरक्षित नारी है

बेटी हो तो सिर बाप के झुक जाते हैं
दहेज की कुछ इस कदर फैली महामारी है

बेटा घर का चिराग बेटी पराये घर का राग
बेटे बेटी का ये अंतर्द्वंद्व अभी भी जारी है

पाप किसी का दोष इसके के सर मढ़ा जाता है
इस ज़ुल्म को देख भी चुप रहती दुनिया सारी है

आने देते नहीं बाहर माँ की कोख से
जन्म से पहले कर देते मृत्यु हमारी है

बेटा हुआ तो पुरुष का ही है सारा कमाल
हो गई बेटी तो ये माँ की जिम्मेदारी है

बेटे की चाह में कुछ यूँ गिर जाते हैं लोग
पहली के होते करते दूसरे विवाह की तैयारी है

चैन से जीने नहीं देगा ये समाज तुझे
यदि घर मे बैठी तेरे बेटी कुँआरी है

बेटे को दिए ये महल दुमहले तुमने
बेटी को मिली सिर्फ़ औरों की चाकरी है

आज़ादी का सारा सुख तो है मर्दों के लिए
औरत की दुनिया तो बस ये चारदीवारी है

एक साथ ख़त्म हो जायें यदि औरतें सारी
तो मिट जायेगी ये जो सृष्टि तुम्हारी है

लुट रही है जो हर ओर लाज ललनाओं की
समाज के ठेकेदारों बनती तुम्हारी भी जवाबदारी है

महिला दिवस मना के एक पल ये भी सोचो
क्या नारी सिर्फ़ इस एक दिन की अधिकारी है?

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