अलविदा
रचना श्रीवास्तवछत की मुँडेर
पर बैठी मैं
पैर हिलाती हुई
अपने दर्द को
सहलाती पुचकारती
उससे पूछती हूँ
क्यों रे
मुझसे तेरा दिल न भरा
कभी तो मेरा साथ छोड़ा होता
वो ख़ामोश सुनता रहा
मै नीचे उतर आई
आँगन से देखा
वो अभी भी मुँडेर
पर बैठा था
उनसे कहा "अलविदा"
और कूद गया
गली में वो बेजान पड़ा था
आँसू मेरे
पलकों की सलाखें पकड़
झाँकते रहे
मै अंदर से एकदम खाली थी
क्योंकी मेरे पास
इस दर्द आलावा कुछ था ही नहीं
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