ज़ख्म लहू और लाशें, वो क़त्लेआम का नज़ारा 

15-05-2020

ज़ख्म लहू और लाशें, वो क़त्लेआम का नज़ारा 

कुणाल बरडिया (अंक: 156, मई द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)

ज़ख्म लहू और लाशें, वो क़त्लेआम का नज़ारा 
रक्तरंजित आँगन, आँसुओं से भरा गलियारा
विस्थापन का मंज़र, वो अपनों का बंटवारा
स्मरण रहे पल पल इसिहास का पाठ सारा
 

आतंक का तांडव, खंडित हुआ भारत प्यारा  
कट्टरता के नाम पर बना मनुष्य भी हत्यारा  
मज़हबों के खिलवाड़ में धर्म से होता किनारा  
स्मरण रहे पल पल इतिहास का पाठ सारा
 

संस्कारों का पतन, मतांतरण का खेल न्यारा
ऋषि मुनियों का देश क्यों जयचंदों से हारा
सत्य से ओझल मनुष्य बस जीवित बेसहारा
स्मरण रहे पल पल इसिहास का पाठ सारा
 

स्वप्न पालें फिर गौरव का, महके ज्ञान हमारा  
जगे सोने की चिड़िया, चमके भारत का सितारा
बने विश्वगुरु फिर से, बहे त्याग धर्म की धारा
स्मरण रहे पल पल इसिहास का पाठ सारा
 

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