तुम्हारी वो आँखें

21-10-2017

तुम्हारी वो आँखें

डॉ. विनय ‘विश्‍वास’

नीरस कहता है जो विचारों को
उसने देखी नहीं
एक के बाद एक तर्क करती
तुम्हारी उँगलियाँ
हवाओं में बनाती हुई चित्र
अपनी लय में

देखी नहीं तुम्हारी वो आँखें
जो एक ही साँस में पढ़ जाने को आतुर हैं
दुनिया-जहान के विचार

अगर नीरस होते विचार
तो ऐसा क्यों चाहती आँखें
… वो भी तुम्हारी!

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