सुबह-सुबह खिल उठी सुबह

26-05-2014

सुबह-सुबह खिल उठी सुबह

डॉ. विनय ‘विश्‍वास’

चाय उबलने लगी
नाक फुरफुराते कान खड़े कर बैठ गए कुत्‍ते
दाने-पानी की तलाश मँडराने लगी
मुँदी पलकें लाल होने लगीं
ताज़ादम साँसें छोड़ने लगे पेड़

अँधेरे के थान काटने लगीं
धूप की तेज़ होती छुरियाँ

... लड़कियाँ सुबह-सुबह काम पे निकल पड़ीं।

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