सिकुड़ता बिन्दु
बलबीर माधोपुरीपंजाबी कविता
हिन्दी अनुवाद : सुभाष नीरव
बहुत कुछ पीछे रह गया है
बचपन की तरह
मसलन-
मेरा गाँव, मेरे लोग
बेटों से बढ़कर खेत
‘मिरज़े’ के जंड जैसे
मुहब्बत के गवाह वृक्ष।
बह चुके पानियों की तरह
बहुत कुछ लाँघ आया है
मिट्टी का यह पुतला
मसलन-
साँस दर साँस
गीता के कुल अध्याय से
ढाई गुना साल
मोह-प्यार की दीवारें
और पहाड़ों की चढ़ाई।
बहुत कुछ भूल गया है
स्वप्न की तरह
मसलन-
परिन्दे की उड़ान
अपनी जद
अपनी जुबान
और ‘सयालों की जाइयों’ का मुल्क।
बहुत कुछ संग है
बीवी-बच्चों की तरह
मसलन-
मुहब्बत के पीछे दुश्मनियाँ
काफूर हो गये रिश्ते
पानियों के बंटवारे से
विभाजनों के हौलनाक दृश्य।
और पर कटे परिन्दे को बस याद है
जिस्म में चक्कर काटते लहू की तरह
बिखरे हुए चुग्गे को चुगने का ख़याल।
बहुत कुछ पीछे रह गया है
बचपन की तरह
मसलन-
मेरा गाँव, मेरे लोग
बेटों से बढ़कर खेत
‘मिरज़े’ के जंड जैसे
मुहब्बत के गवाह वृक्ष।