शीशा 

रंजीत कुमार त्रिपाठी (अंक: 159, जुलाई प्रथम, 2020 में प्रकाशित)

चंद लम्हें याद हैं, 
चंद लम्हों की थी वो ख़ुशी ।
चाँद-सा चेहरा था जिसका, 
चाँदनी सी थी हँसी॥


वक़्त के भयानक बादलों ने था, 
उसको छिपा लिया।
खोया था मैंने जिसे उसे, 
बादलों ने था पा लिया॥


उन बादलों का रंग 
काला हुआ उस दर्द से।
बादलों पर था न असर, 
पाला पड़ा बेदर्द से॥


उन बादलों  से जो –
बूँदें निकलती नीर की।
वो बूँद कहती हैं, 
कहानी किसी की पीर की॥ 


उस बूँद के सामने 
सिन्धु भी उथला हुआ।
वो बूँद थी कोई प्यार की,
या था  शीशा कोई पिघला हुआ॥

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