शरद ऋतु (भगवत शरण श्रीवास्तव)

19-12-2014

शरद ऋतु (भगवत शरण श्रीवास्तव)

भगवत शरण श्रीवास्तव 'शरण'

शरद ऋतु का हुआ आगमन गिरता है तुषार झर-झर के
अंबर जैसे बाँट रहा हो अपना सुख अँजुली भर-भर के।
सूने तरू हो गये रूपहले डाली डाली झूम उठी है
आज प्रकृति आनंद मनाती ग्रीष्म रूत को शांत है कर के।


स्नो ब्लोअर घर घर निकले चल पड़ने को आतुर मचले
भाँति भाँति के स्नो सूट पहन के निकलेंगे सब घर से।
हाई वे पर प्लाउ, चलेंगे स्नो से अठखेल करेंगे
एक अजब सा दृश्य है बनता जब फेंके स्नो धर-धर के।


विन्टर गेम्स हैं मन भावन बालक औ वृद्ध के मन के
स्नो-मोबिल चलेंगी जब तब सर-सर करती फर-फर से।
चुस्की चाय कॉफ़ी की लेगे रेस्त्रां में घर में दफ़तर में
कॉफ़ी डोनट साथ निभाते जब सब काँपें हैं थर-थर से।


जब-जब चले बयार हिमानी स्नो की फुलझड़ी बनाती
वृक्ष झूम के करते करतब झरते हैं स्नो झर-झर के।
सेंटा क्लॉउज़ है आने वाला बच्चों को करता मतवाला
नार्थ पोल से आयेगा वो रेंडियर पर गिफ़्ट भर-भर के।

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