शब्द

निलेश जोशी 'विनायका' (अंक: 173, जनवरी द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

खेल है शब्दों का ही सारा
चाहे मन में विष की धारा
मीठे शब्दों के मकड़जाल में
फँस जाता  हर दिल बेचारा।
 
सुंदर चेहरा आकर्षित करता
शब्द सुंदर आनंदित करता
गहरे ज़ख़्म भी शब्द ही देता
वापस उनको शब्द ही भरता।
 
बिखरे शब्दों का मोल नहीं
होता जब तक गठजोड़ नहीं
शक्ति शब्दों की रहती ना इनमें
होता मन में जब तोल नहीं।
 
शब्द ही मित्र बनाता सबको
शब्द ही शत्रु बनाता जग को
पत्थर को भी तरल बना दे
अद्भुत शक्ति मिली है इसको।
 
विष अमृत शब्दों में मिलता
जो जैसे शब्दों को है बुनता
कोई शब्दों से अमृत पान कराता
कोई विष बाणों से घायल करता।
 
मर्यादित शब्दों का ले लो सहारा
आनंदित जीवन इनसे सारा
कड़वी बातें भाती है किसको
मर जाएगा सुन सुन बेचारा।

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