रोटी

महेन्द्र देवांगन माटी (अंक: 158, जून द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)

रोटी ख़ातिर आज सब, दौड़ रहे हैं लोग।
कोई तड़पे भूख से, कोई छप्पन भोग॥

 

देख धरा के हाल को, क्या होगा भगवान।
भूख मिटाने आदमी, बन बैठा शैतान॥

 

काम करो सब प्रेम से, तभी बनेगी बात।
कड़वाहट जो घोल दे, वो खायेगा लात॥

 

धरती माता को कभी, मत बाँटो इंसान।
अन्न उगाओ खेत में, तभी बचेगी जान॥

 

माटी के सब पूत हैं, कर लो ऐसे काम।
याद करे सब आदमी, रहे जगत में नाम॥

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