रक्तचाप
लवनीत मिश्रमैं रक्तचाप चिंता की छाप,
हर आयु में प्रहार करूँ,
तुम रुदन करो या नमन करो,
मैं पीछा ख़ुद दिन रात करूँ।
मुझे आदत नहीं दवाई की,
लाख नियंत्रण तुम कर लो,
मेरी औषधि मन शांति,
वो मिले नहीं तुम जतन करो।
मेरे होने का अनुमान,
सरलता से ना हो पाए,
आधार मेरा तेरे अंदर,
व्यवहार में तेरे रह जाए।
मैं भक्षण करता क्रोध भय,
मैं रहता मन की चिंता में,
मैं माथे की लकीर बन,
दिखता हूँ जन की चिंता में।
रक्तचाप से मुक्ति की,
युक्ति तुम्हें हूँ बताता,
मन शीतल निर्मल हो तो,
यह रोग निकट नहीं है आता।