प्यार की परिभाषा
अनुराधा सिंहअब जाना क्या है प्यार की परिभाषा
सुनहली रेत पर हलकी हवा के अक्षर
तपती दोपहरी पर ठंडी हवा का स्वर
डूबती साँसों में जीवन की आशा
अब समझी क्या है प्यार की परिभाषा
नया कुछ भी नहीं है बहुतों ने किया प्यार
कुछ को मिला दुलार, इनकार या इकरार
पर ऐसा इज़हार. . .?
सोच कर लट्टू सा घूम जाती हूँ
पागलपन के क़दम चूम जाती हूँ
घूम घूम इतराती हूँ, और यक़ीं नहीं कर पाती हूँ
फ़िल्मी गाने याद आते हैं
नृत्य नृत्य कर जाते हैं
ग़म ज़मींदोज़ हो जाते हैं
चक्कर चक्कर हो जाते हैं
अब समझी पपीहे के प्यार की भाषा
और जाना क्या है प्यार की परिभाषा
ये क्या है कुछ समझ न आवे
इ वो है जो कृष्णा को भावे
मैं राधा हूँ या रुक्मिणी समझ न आवे
हे कान्हा तू जो न करवावे
मैं तो तुझे ही नहीं राम को भी याद करती हूँ
फिर तू ही क्यूँ दिल में बसे है
सीता के सतित्व पर मरती हूँ
फिर राधा ही क्यूँ डसे है
मरी हुई दुनिया में कुछ ज़िन्दों का
तू तो ईश्वर है प्यार के परिंदों का
एक पतित पावन अभिलाषा
अब जाना क्या है प्यार की परिभाषा