प्रेम – 002
नीतू झातुम्हारे लिए सिर्फ़ बँधना प्रेम है
मेरे लिए तुम्हारा होना ही प्रेम है
अनंत है जीवन मृत्यु का भेद
प्रेम को प्रेम से समझना ही प्रेम है।
तुम ढूँढ़ रहे हो . . . भटक रहे हो . . .
भाग रहे हो . . . ख़ुद से
मैं स्थिर हूँ शांत हूँ तुम में . . .
क्योंकि मुझे तुम ही तुम मिले हो।
तुम नाराज़ हो मुझसे, ख़ुद से, संसार से
पर मुझे तो सबमें प्रेम ही प्रेम दिखता है
यह दुनिया टिकी है प्रेम के बल पर ही
प्रेम ही आनंद का स्रोत है
जहाँ प्रेम है वहीं जीवन है
प्रेम को ठुकराना
जीवन को ठुकराना है।