पिता के जाने के बाद
सतीश राठीपिता के जाने के बाद
बहुत कुछ ढह जाता है जीवन में
घर हो जाते हैं खण्डहर
गिरने लगते हैं टूटते रिश्तों की तरह
सम्बन्धों में आ जाती है नीरसता
सब कुछ हो जाता है औपचारिक
बचपन की मधुर स्मृतियाँ
होने लगती हैं धूमिल
जब तक रहे थे पिता आँखों के समक्ष
सारे जीवन में थी एक निश्चिंतता
उनकी बाँहों में
मर जाते थे सारे दुख
मिट जाती थी सारी पीड़ा
और मिल जाता था उनके पास
हर समस्या का समाधान
अब पिता के चले जाने के बाद
जो भी कुछ ढह गया है जीवन में
बड़ा मुश्किल हो गया है
फिर से उसका वापस आ जाना।