पीड़ा का उत्सव
राजकुमार जैन राजनसुन दोस्त!
मौसम बदल रहा है
हमारे संघर्ष की धार
पैनी हो रही है
सूर्योदय की प्रथम किरण के साथ
कब मिलेगी ज़िंदगी
हम खोजते रहे
एकाकीपन की छाया थी
मानस के सूने अम्बर में
समय की धार से जब भी
पहाड़ की तरह टूटना पड़ता है
सपनों के कटाव से
एकएक सैलाब
मेरे भीतर भी बहता है
नई क्रांति उगाने के लिए
मन के सूने गाँव में
पतझड़ को देकर विराम
संकल्पों का इंद्रधनुष
मेहनत का पानी
और जुगनू जैसी चमक
राह दिखा देती है
अपने पदचिन्हों को देखते हुए
आनन्दित होता हूँ
और अपनी पीड़ा का उत्सव मनाता हूँ
जीवन के सफ़र में
ख़ुद से ख़ुद की लड़ाई
जीतने के लिए