पाँवों में पहिए लगे
डॉ. राजेन्द्र गौतमभूल गया
मेरा शहर
सब ऋतुओं के नाम।
गुलदस्ते
मधुमास को
बेचें बीच बजार
सिक्कों की खनकार में
सिसके मेघ मल्हार
गोदामों में
ठिठुरती
जब से वत्सल घाम।
पाँवों में
पहिए लगे
करें हवा से बात
पर खुद तक पहुँचे कहाँ
चल कर हम दिन-रात
यहाँ-वहाँ
भटका रहीं रोशनियाँ अविराम।
पूरब सुकुआ
कब उगा
कब भीगी थी दूब
हिरनी छाई गगन कब
चाँद गया कब डूब
सभी कथानक
गुम हुए
भौंचक दक्षिण-वाम।
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कविता
-
- तैर रहे हैं गाँव
- उजाला छिन न पाएगा
- चिड़िया का वादा
- टपक रहीं हैं खपरैलें
- द्वापर-प्रसंग
- पंख ही चुनते रहे
- पाँवों में पहिए लगे
- पिता सरीखे गाँव
- बरगद जलते हैं
- बाँस बरोबर आया पानी
- बाढ़ नहीं यह...
- बिजली का कुहराम
- मन, कितने पाप किए
- महानगर में संध्या
- मुझको भुला देना
- वन में फूले अमलतास हैं
- वृद्धा-पुराण
- शब्द सभी पथराए
- सिर-फिरा कबीरा
- हम दीप जलाते हैं
- क़सबे की साँझ
- साहित्यिक आलेख
- दोहे
- विडियो
-
- ऑडियो
-