नदी का कुनबा
डॉ. दयारामइस तट से उस तट तक
हुआ करती थीं
कुनबे की बातें
सुबह-शाम
रहती रौनक़ मेलों-सी
नदी गुनगुनाती
मधुर गीत सुनाती
धीरे-धीरे शब्द रूठ गये
नदी के गीत छूट गये
नदी अब भी बहती है
ज़मीन से चिपकी
सिसकती-सी, टेढ़ी-मेढ़ी
न गुनगुनाती है
न गीत सुनाती है
मौन है, तड़फड़ाती है
पर आँसू नहीं बहाती है।
1 टिप्पणियाँ
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sundar v bhav puran kavita