मिठास
डॉ. विनय ‘विश्वास’सिंकती हुई रोटी की शक्ल में खिली आग
पत्थर बहाते झरने की शक्ल में खिला पानी
आसमान भरती उड़ान की शक्ल में खिली हवा
फूलों के खिलने की शक्ल में खिली मिट्टी
... मैं... अपनी बेटी की शक्ल में खिला
मैंने कहा-
मुक्त बच्चा सबसे अच्छा
वो बोली- पापा बच्चा सबसे अच्छा
मैंने कहा-
मुक्ता रानी गुड़िया रानी बिटिया रानी है
वो तपाक से बोल पड़ी-
पापा राने गुड्डे राने बेटे राने हैं
मैंने कहा- मेरा मुक्तेश
उसकी बाँहें फैल गईं- मेरा पापेश
आज भी उसका बचपन
मिठास का उद्गम बताता है
आदमी जो बोलता है
वही
उसके पास लौटकर आता है।