मन, कितने पाप किए

31-12-2007

मन, कितने पाप किए

डॉ. राजेन्द्र गौतम

गीतों में 
लिखता है जो पल 
वे तूने नहीं जिए
मन, कितने पाप किए


धुंध-भरी आँखें 
बापू की माँ की
तेरी आँखों में क्या 
रोज नहीं झाँकी
वे तो बतियाने को आतुर


तू रहता होंठ सिए
मन, कितने पाप किए


लिख-लिख कर फाड़ी जो 
छुट्टी की अर्जी
डस्टबिन गवाही है
किसकी खुदगर्जी
तूने इस झप्पर को थे


कितने वचन दिए
मन, कितने पाप किए


इनके संग दीवाली
उनके संग होली
बाट देखते सूखी 
घर की रांगोली
घर से दफतर आते-जाते


सब रिश्ते रेत किए
मन, कितने पाप किए

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