मैं तो गूँगी थी तुम भी बहरे निकले

16-09-2017

मैं तो गूँगी थी तुम भी बहरे निकले

डॉ. सुधा ओम ढींगरा

मैं तो गूँगी थी तुम भी बहरे निकले
ग़मों के साये तभी इतने गहरे निकले।

मैं तो चुप थी शायद तुम कुछ बोलो
तुम्हारी ज़ुबाँ पर भी लगे पहरे निकले।

तुम्हारी ख़ामोशी को जाना खरोंच की मानिंद
दर्द उठा तो जाना ज़ख़्म वो गहरे निकले।

न जाने कब यह ज़िंदगी हसीं होगी
अभी तो ख़्वाब ही सुनहरे निकले।

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

पुस्तक समीक्षा
रचना समीक्षा
कविता
साहित्यिक आलेख
नज़्म
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में

लेखक की पुस्तकें