मैं तो गूँगी थी तुम भी बहरे निकले
डॉ. सुधा ओम ढींगरामैं तो गूँगी थी तुम भी बहरे निकले
ग़मों के साये तभी इतने गहरे निकले।
मैं तो चुप थी शायद तुम कुछ बोलो
तुम्हारी ज़ुबाँ पर भी लगे पहरे निकले।
तुम्हारी ख़ामोशी को जाना खरोंच की मानिंद
दर्द उठा तो जाना ज़ख़्म वो गहरे निकले।
न जाने कब यह ज़िंदगी हसीं होगी
अभी तो ख़्वाब ही सुनहरे निकले।