महिला दिवस
मोहम्मद जहाँगीर ’जहान’वह कैसे महिला दिवस मनाये?
क्या स्त्री पा गयी समानता
अधिकार जो संविधान ने है दिया
बंद हो गया नारी अत्याचार
क्या नहीं होता स्त्री से बलात्कार
कोई बेटी दहेज की बलि तो नहीं चढ़ती
क्या माँ की गोद अब नहीं उजड़ती
स्त्री का सुहाग तो अब नहीं उजड़ता
क्या दी है उसको बोलने की अभिव्यक्ति
रजस्वला अवधि में पवित्रता तो नहीं जाती
बेटी कोख में तो अब नहीं मारी जाती
क्या पढ़ें बेटियाँ बढ़ें बेटियाँ साकार है?
या कोई राजनीति का मंत्रोच्चार है?
रात के सन्नाटे में स्त्री बेख़ौफ़ निकल सकती है
क्या स्त्री अबला से सबला में बदल सकती है
यदि नहीं!
तो फिर,
वह कैसे महिला दिवस मनाये?
यदि हाँ!
तो फिर,
यह तारीख़ क्यों रोती है?
उन्नाव की बेटी, आसिफ़ा या निर्भया
उनका था कसूर क्या?
क्या स्त्री होना पाप था?
जो दी गयी उन्हें सजा
खूब नोचा स्तनों को और
भग में सोंटा दिया घुसा
इससे भी न जी भरा तो
अग्नि में दिया जला
परिवार आया रास्ते में
उसे भी कुचलवा दिया
सत्ता में वह बैठे थे
तिरंगे का सहारा लिया
काला दिन था इतिहास का
अख़लाक़ जब मारा गया
रोहित, नजीब, पहलू, ज़ुनैद
सब कर दिये जहाँ से नापैद
बेवा हुई इक स्त्री
दूजी ने बेटा खो दिया
भाई इक का मर गया
दूजी का वह बाप था
गौरी जिसने सच लिखा
करवा दी उसकी हत्या
'जहान' स्त्री है कितनी असहाय!
फिर कैसे महिला दिवस मनाये?