उमंग हो उत्तंग हो, भावना न भंग हो
खिलें पुष्प वाटिका कली कली भ्रंग हो॥
हर्ष पग पग मिले ख्याति की तरंग हो
दमयन्ती की कथा हर मन के संग हो॥
याचना सदा करे न कभी कलंक हो
वासना भरे न मन दूर ही अनंग हो।
कामना यही करूँ धैर्य धर विहंग हो
केतु आपका सदा लहरता दिगन्त हो॥
हरि "आदेश" हो शिव नंदी शंख हो,
दमयन्ती काव्य का केवल प्रसंग हो।
पीढ़ियाँ पढ़ेंगी "आदेश" नाम कंठ हो
ऐसे महाकाव्य का विश्व में रंग हो॥
हृदय हर पंक्ति पर दे रहा बधाई है।
लहर लहर बह रहा जैसे जल गंग हो॥
"शरण" अबोध की शुभ कामना लीजिये
तृतीय महाकाव्य की फैलती सुगंध हो।।