मधुवन कली

15-03-2021

मधुवन कली

रंजीत कुमार त्रिपाठी (अंक: 177, मार्च द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

वह ब्रज मधुवन की कली,
खेलन को थी होली चली। 
थी संग एक टोली अली,
पीछा करे मधुवन कली॥
 
कर में गहे पिचकारियाँ, 
उर में हर्षित क्यारियाँ॥
थी उठ रही सिसकारियाँ,
थी जल रही चिनगारियाँ॥
 
चहुँ रंग-गुलाल, अबीर उड़े,
कहुं भंग की मस्ती छैल पड़े। 
ऐसी सुन्दरता ब्रज के लखि के
देवन भी होली खेल पड़े॥
 
वह राधिका मधुवन कली,
छोड़ के सखियन चली।
थी ढूँढ़ती  नयनन अली,
वह ब्रज की गलियन चली।
 
कहुं रासबिहारी न देखि परे,
राधा बिरहा में जली मरे।
ज्यों जान सकूँ मैं पता उनका,
सीधे ही जाय  के पाय परुं॥
 
एक मंद हवा का झोंका आया,
कृष्ण संदेशा  संग वो लाया।
कृष्ण संदेशा लाकर उसने,
प्रेम अवचेतन को चेतन लौटाया॥
 
बाँसुरी की मंद लहरी,
आ रही यमु कुञ्ज से।
कृष्ण थे काले भ्रमर से’
मंद लहरी गुंज से॥
 
या थे वे प्यारे सुमन,
पैदा हुए मधु कुञ्ज में। 
जो संग थे गोपाल,
वो बैठे पराग के पुंज में॥
 
पाय के सन्देश पिय का,
श्यामा थी दौरत चली।
पीछा करे टोली अली,
थी जो वो मधुवन कली॥ 
 
पाय के मधुसूदन को,
सखियन को भूल चली। 
थी बहुत ज्यादा ये,
बात सखियन को खली॥
 
देखि के सम्मुख प्रिये को,
राधिका जड़वत भई।
सब शून्य हो धरा रही,
जुबाँ से कुछ न जाए कही॥ 
 
फिर अचानक श्याम ने,
श्यामा को श्याममय कर डाला। 
होली के उन हलके रंगों में,
प्रेम रंग में रंग डाला॥
 
वो राधिका कछु सोच के,
थी सुबह घर से चली।
थी कली वो श्याम को,
श्याममय करने चली॥
 
श्याम तो थे श्याम ही,
घनश्याम थे उनके अली। 
श्याम वो तो हो न सके,
पर श्यामा श्यामल हो चली॥
 
थी छूटती पिचकारियाँ,
विविध रंगों से भरी।
पर उन रंगों में भी थी, 
प्रेम की रंगत भरी॥
 
थे गोप -ग्वालिन खेलते,
रंग और गुलाल से।
पर रंग सब पर पड़ रहा था,
नन्द के गोपाल से॥
 
देखि ब्रज की अनोखी छटा,
देवन भी स्वर्ग को धाय चले। 
धरि रूप देव भी ग्वालन को,
 होली खेलन को ताहि चले॥
 
श्याम लखें, श्याम पहिचानी,
श्याम बढ़े, चले देव लिवाने॥  
श्याम जात, श्यामा रिसियानी,
श्याम समुझाए राधिका रानी॥ 
 
श्याम -श्यामा संग,
देवों ने भी होली खेली।
होली की उस आड़ तले,
जीवन की सुख निधि ले ली॥ 
 
सब खेलते थे रंग पर,
लगता नहीं था रंग।
स्नेह -भक्ति -प्रेम से,
सुर - नर लग रहे थे परस्पर अंग॥
 
शाम के घिरते समय,
श्यामा थी चुपके से चली। 
कुछ सोचती थी वो हृदय में,
मुस्कुराती मधुवन कली॥   
 
थी साथ नहीं कोई अली,
चित्त धरे मधुसूदन चली। 
आज स्वयं मधुवन कली,
पीछा करे मधुसूदन अली॥

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