लक्ष्मी स्तुति

01-11-2019

लक्ष्मी स्तुति

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'


(मंदाक्रांता छंद) 


लक्ष्मी माता, जगत जननी, शुभ्र रूपा शुभांगी।
विष्णो भार्या, कमल नयनी, आप हो कोमलांगी॥
देवी दिव्या, जलधि प्रगटी, द्रव्य ऐश्वर्य दाता।
देवों को भी, कनक धन की, दायिनी आप माता॥

 

नीलाभा से, युत कमल को, हस्त में धारती हो।
हाथों में ले, कनक घट को, सृष्टि संवारती हो॥
चारों हाथी, दिग पति महा, आपको सींचते हैं।
सारे देवा, विनय करते, मात को सेवते हैं॥

 

दीपों की ये, जगमग जली, ज्योत से पूजता हूँ।
भावों से ये, स्तवन करता, मात मैं धूजता हूँ॥
रंगोली से, घर दर सजा, बाट जोहूँ तिहारी।
आओ माते, शुभ फल प्रदा, नित्य आह्लादकारी॥

 

आया हूँ मैं, तव शरण में, भक्ति का भाव दे दो।
मेरे सारे, दुख दरिद की, मात प्राचीर भेदो॥
मैं आकांक्षी, चरण-रज का, 'बासु' तेरा पुजारी।
खाली झोली, बस कुछ भरो, चाहता ये भिखारी॥


× × × × × ×

"दीपावली पर शुभकामना"

 

दीपों की ये, जगमग करे, ज्योत यूँ ही उरों में।
माता लक्ष्मी, हरदम रहें, आप ही के घरों में।
विष्णो भार्या, सहज कर दें, आपकी जिंदगी को।
दीवाली पे, 'नमन' करता, मात की बन्दगी को।

 

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लक्षण छंद (मंदाक्रांता  )

"माभानाता,तगग" रच के, चार छै सात तोड़ें।
'मंदाक्रांता', चतुष चरणी, छंद यूँ आप जोड़ें॥

"माभानाता, तगग" = मगण, भगण, नगण, तगण, तगण, गुरु गुरु (कुल 17 वर्ण)
222   2,11   111  2,21   221   22  
चार छै सात तोड़ें = चार वर्ण,छ वर्ण और सात वर्ण पर यति।

(संस्कृत का छंद जिसमें मेघदूतम् लिखा गया है।)

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