लघुकथा में महकती है माटी की ख़ुशबू 

15-10-2019

लघुकथा में महकती है माटी की ख़ुशबू 

सतीश राठी

पुस्तक : माटी कहे कुम्हार से... 
लेखिका : डॉ. चंद्रा सायता 
प्रकाशक : अपना प्रकाशन, 
म. नं. 21, सी-सेक्टर, हाई टेंशन लाइन के पास, सुभाष कालोनी, 
गोविंदपुरा, भोपाल – 462 023
मूल्य : 200 रुपए
पृष्ठ : 103


लघुकथा की रचना प्रक्रिया पर भगीरथ ने कहा है कि "जब रचना एक तरह से मस्तिष्क में परिपक्व हो जाती है और संवेदनाओं के आवेग जब कथाकार के मानस को झकझोरने लगते हैं तब रचना के शब्दबद्ध होने की प्रक्रिया प्रारंभ होती है। इस प्रक्रिया के दौरान रचना परिवर्तित होती है। भाषा शिल्प पर बार-बार मेहनत से भी रचना में बदलाव आता है। यह बदलाव निरंतर रचना के रूप को निकालता है ।यह भी संभव है कि मूल कथा ही परिवर्तित हो जाए ।"उन्होंने यह भी कहा है कि स्थिति, मन: स्थिति, वार्तालाप मूड आदि से संबंधित अनुभव जो लघु कलेवर या कथा रूप में व्यक्त होने की संभावना रखते हैं, उन्हें लघुकथाकार अपनी सृजनशील कल्पना, विचारधारा एवं अंतर दृष्टि से लघुकथा में अभिव्यक्त करता है।

यह संदर्भ यहाँ पर मैंने इसलिए दिया है क्योंकि लघुकथा की रचना प्रक्रिया को ही मैं बहुत महत्वपूर्ण मानता हूँ। मेरा ऐसा सोचना है कि लघुकथा लिखना इतना सरल कार्य नहीं है जितना कि आजकल समझा जा रहा ह॥ कई लेखकों की, मैंने देखा है हर साल एक किताब आ रही है, पर जब हम उन  लघुकथाओं को गुणवत्ता के आधार पर देखते हैं, तो आधी से अधिक लघुकथाएँ ख़ारिज हो जाती हैं। यदि आपने अपने 30 वर्षों के लेखन में 200 लघुकथाएँ लिख दीं तो पर्याप्त है, क्योंकि उन 200 में वह सारी बात आ सकती है जो एक लेखक संप्रेषित करना चाहता है।
 काल, समय, परिवेश, परिस्थिति यह सब लेखन पर प्रभाव डालते हैं। उन सबसे जो विषय हमें प्राप्त होते हैं उन्हें पूरे शिल्प के साथ प्रस्तुत करना ज़रूरी होता है। ’माटी कहे कुम्हार से...’ चंद्रा जी का दूसरा लघुकथा संग्रह है। इसके पहले उनका एक लघुकथा संग्रह  ’गिरहें’ शीर्षक से आ चुका है और उसका सिंधी भाषा में अनुवाद हो चुका है। यह बड़ा ही महत्वपूर्ण है कि वे निरंतर हिंदी में लेखन कर रही हैं, और सिंधी भाषा में भी समान अधिकार के साथ रचना कर्म कर रही हैं।

चंद्रा जी के इस दूसरे लघुकथा संग्रह ’माटी कहे कुम्हार से...’ को देखने पर मैंने पाया कि यह लघुकथाएँ समय और परिवेश के प्रति एक सजग रचनाकार की लघुकथाएँ हैं। वे अपने आसपास के परिवेश का बारीक़ी से निरीक्षण करती हैं और वहाँ से विषय उठाकर उन पर लघुकथाएँ रचती हैं। उनकी अधिकांश लघुकथाओं के पात्र हमारे आसपास के पात्र होते हैं। यह एक लेखक की ख़ूबी होती है कि वह समाज में से विषयों को निकाल कर समाज को दिशा ज्ञान प्रदान करें।

नाम गुनिया,  पौरुषेय दम्भ, असली दोषी, प्रतिष्ठा, कवच, अधिकार, नास्तिक, माटी कहे कुम्हार से इस संग्रह की कुछ महत्वपूर्ण लघुकथाएँ हैं। शुष्क दांपत्य भी मुझे एक अच्छी लघुकथा के रूप में लगी है, पर फिर भी मेरी एक शिकायत लेखिका से यह है कि उन्होंने अपनी लघुकथाओं को शिल्प के स्तर पर और अधिक कसावट के साथ प्रस्तुत करना था। जितने महत्वपूर्ण विषय वे उठाकर  लाती हैं, उनकी प्रस्तुति में वहाँ शिल्प की कमी होने से लघुकथा बिखरी-बिखरी सी लगती है, और कई बार उन विषयों की विश्वसनीयता स्थापित नहीं होती है। बावजूद इसके यह लघुकथाएँ अपने विषय में वैविध्य के कारण प्रभावित करती हैं। नवीन और अनूठे विषयों की खोज इन लघुकथाओं में की गई है, जो बड़ा ही महत्वपूर्ण है। हमें उम्मीद है कि उनका अगला लघुकथा संग्रह और अधिक अच्छे रूप में हम सबके सामने आएगा। मैं उन्हें बधाई देता हूँ।

सतीश राठी
समीक्षक
आर 451, महालक्ष्मी नगर,
इंदौर 452010
9425067204


 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें