लाश : कहानी चर्चा

16-09-2017

लाश : कहानी चर्चा

डॉ. सुधा ओम ढींगरा

श्री सुमन कुमार घई जी की कहानी लाश पिछले दिनों पढ़ने को मिली। कथा वस्तु एवं विषय विन्यास भारतवंशियों की ज्वलंत समस्या को लेकर बुना गया है। विदेशों में बसे साऊथ एशियनज़ की चुनौतियों में मुख्य है – कई परिवारों में बच्चों का सही मार्गदर्शन न होना। दो संस्कृतियों के मध्य पल रहे बच्चे, कई बार बहुत ऊहा-पोह की स्थिति झेलते एवं भोगते हैं। उन्हें परिवार एवं अपने समुदाय से उचित और स्पष्ट दिशा की ज़रूरत होती है। कुछ वर्ष पहले तक भारतीय समाज में ’सपोर्ट ग्रुप’ एवं काऊँसलिंग की बहुत कमी थी। बहुत से परिवार भी दो संस्कृतियों में बौखलाए रहते थे। अब इस दिशा में बहुत काम हो रहा है। बच्चों में बढ़ रहा नशे का आकर्षण और आत्मदाह की घटनाओं से पीड़ित समुदायों ने मददगार संस्थाएँ, दिशा-निर्देश ग्रुप एवं विचार-विमर्श क्लब बनाए हैं।

सुमन जी की कहानी का आरम्भ बड़े-बूढ़ों की दिनचर्या – सैर – से होता है। सुमन जी ने जिस तरह से चरित्रों का चित्रण किया है उससे एक समां सा बंध जाता है और वातावरण एक तरह का माहौल सा पैदा कर देता है। पाठक अनजाने ही इन चरित्रों का हिस्सा बन उनके साथ चल पड़ता है। उनके वार्तालाप, तानाकशी, जिज्ञासा और उनकी भावनाओं के आवेगों के साथ-साथ जीवन के रसों का आनन्द उठाने लगता है।

सड़क पार लाश देख कर सभी बज़ुर्ग व्यथित हो उठते हैं। फिर जिस तरह से भय, कौतुहल, कटुता, पीढियों के अन्तर व संस्कृतियों के टकराव का वातावरण सुमन जी ने पैदा किया है, वह पढ़ने वाला है। पाठक इन सब चरित्रों के साथ खड़े हुए बिना रह ही नहीं सकता। लाश की पायल, बाल, कपड़ों इत्यादि का पात्रों के वार्तालाप से एक चित्र खींचा है लेखक ने – लाश देखने के बाद, सहेली को उसकी कहानी बताने का विवरण भी चित्रात्मक शैली में ही उभर कर आया है। नाटक की तरह संवाद चलते हैं। अन्त में जब कहा जाता है, “पुलिस को बताना है कि लावारिस नहीं है यह लड़की। अपनी ही बेटी है।“ किस के पास कहने के लिए कुछ नहीं था। इसके साथ कहानी समाप्त होती है। पाठके पास भी कुछ नहीं रहता सिवाय आँख छलकने के।

लाश कहानी में समुदायों का भेदभाव एवं जात-पात से परे तीन पीढ़ियों का जो समझौता दर्शाया गया है, वह उत्तरी अमेरिका के पुराने स्थानों में देखने को मिलता है। यह कहानी अप्रवासी समाज को झंझोड़ती है। एक सबक सिखाती है। जो परिवार अपने ही खोल में बंधे-बंधे बच्चों को दो संस्कृतियों से जूझने, बाहरी समाज की चुनौतियाँ स्वीकारने, घर और बाहर से सामन्जस्य बनाने में सहायता करने की बजाय, अपने मूल्यों और मापदण्डों को उन पर थोप देते हैं। लाश कहानी उनको जागृत करने वाली कहानी है।

इस कहानी का विदेशी भाषाओं में अनुवाद होना चाहिए। यह समस्या पूरी दुनिया में रह रहे अप्रवासी समुदाय की है। विदेशों के भौतिक सुखों का लालच इन्सान को खींच के यहाँ लाता है पर अपनी सभ्यता, संस्कृति, जीवन मूल्य, दर्शन का मोह और अपने बच्चों को अपनी तरह से पालने का सम्मोह भी रहता है। पर समय, स्थान, देश, खान-पान और युग की पहचान भुला दी जाती है तभी लाश, कहानी का निर्माण होता है। इस कहानी में एक युवा लड़की का जीवन तबाह होने में माँ-बाप की स्वार्थता का बहुत बड़ा योगदान रहा है। यह कहानी दिल और दिमाग दोनों को क्रियाशील करती है। आँसू भी बहते हैं और विवेक भी जागता है। सोचने पर मजबूर करती है। लाश एक सुघड़, सुदृढ़ एवं उत्कृष्ट कहानी है।

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