किंकर्तव्यविमूढ़

15-05-2021

किंकर्तव्यविमूढ़

दिनेश शर्मा  (अंक: 181, मई द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

सुबह से लोन और क्रेडिट कार्ड के लिए कई फोन आ चुके थे। 

एक बार फिर घंटी बजी। उधर से आवाज़ आयी, "मैं . . . बैंक से बात कर रही हूँ। क्या मेरी बात ......से हो रही है , क्या आपको पर्सनल लोन की ज़रूरत होगी?" 

सुनते ही मैं झल्ला पड़ा और बोला, "सुबह से चार फोन आ चुके हैं। क्यों बार-बार परेशान कर रहे हो, आप लोगों को कोई और काम नहीं है क्या?" 

"काम ही तो कर रही हूँ सर। मेरे पास आपके जैसा काम नहीं है ना," कहकर उसने फोन काट दिया। मैं किंकर्तव्यविमूढ़ था ।

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