कल्प - अल्प - विकल्प

01-10-2021

कल्प - अल्प - विकल्प

प्रीति शर्मा 'असीम' (अंक: 190, अक्टूबर प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

तुम कल्प,
       अल्प और विकल्प मेरे . . .
 
तुम बिन एक कल्प गुज़रा।
निसदिन मैं कितना अल्प गुज़रा॥
 
तुम बिन एक कल्प गुज़रा।
ज़िंदगी को . . .
कैसा बिखरने से रोक लेता।
 
मुझपर . . .
हँस-हँस के,
हर विकल्प गुज़रा।
 
फिर भी,
न-उम्मीद नहीं।
जो भी गुज़रा।
कितना अल्प गुज़रा॥
 
कल्प गुज़रें।
ज़िंदगियों की दस्तक।
बदलती रही।
मैंने जिसे सहेज रखा।
गीत वो,
कल्प-दर-कल्प गाती रही।
 
लेकिन रूह में,
जो अल्प तेरा बिम्ब है।
वो अल्प होकर भी,
मेरे सहस्र कल्प हैं।
प्रीति –असीमता का, 
कहाँ कोई विकल्प है।

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