कल्प - अल्प - विकल्प
प्रीति शर्मा 'असीम'तुम कल्प,
अल्प और विकल्प मेरे . . .
तुम बिन एक कल्प गुज़रा।
निसदिन मैं कितना अल्प गुज़रा॥
तुम बिन एक कल्प गुज़रा।
ज़िंदगी को . . .
कैसा बिखरने से रोक लेता।
मुझपर . . .
हँस-हँस के,
हर विकल्प गुज़रा।
फिर भी,
न-उम्मीद नहीं।
जो भी गुज़रा।
कितना अल्प गुज़रा॥
कल्प गुज़रें।
ज़िंदगियों की दस्तक।
बदलती रही।
मैंने जिसे सहेज रखा।
गीत वो,
कल्प-दर-कल्प गाती रही।
लेकिन रूह में,
जो अल्प तेरा बिम्ब है।
वो अल्प होकर भी,
मेरे सहस्र कल्प हैं।
प्रीति –असीमता का,
कहाँ कोई विकल्प है।