जी चाहता है

09-02-2008

जी चाहता है

शशि पाधा

जी चाहता है...
आज कुछ नया करूँ !

सिंधु की तरंग-सी
             चाँद को चूम लूँ,
वसंत के उल्लास में
            तरंग बन झूम लूँ
बीच जल धार में
            भँवर बन घूम लूँ।

जी चाहता है...

साज के तार में
           गीत बन कर सजूँ
कोकिला के गान में
           प्रेम के स्वर भरूँ
धरा के खंड खंड को
          राग रंग से रँगूँ ।

जी चाहता है...

पंछियों की पाँत में
           गगन तक जा उड़ूँ
पुष्प के पराग में
           सुगंध बन कर बसूँ
तितलियों की पाँख में
           रंग बन कर घुलूँ ।

जी चाहता है...

तारों के इन्द्र जाल में
           दीप बन कर जलूँ
दूधिया नभगंग में
           धार सी जा मिलूँ
ओढ़ नीली ओढ़नी
           बादलों में जा घिरूँ

जी चाहता है...

प्राण में उमंग हो
          गान में तरंग हो
जिस राह् पर चलूँ
          हास मेरे संग हो
धरा से आकाश तक
          प्रेम का ही रंग हो

जी चाहता है - जी भर कर जियूँ !
जी चाहता है--आज कुछ नया करूँ !

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