इंटरनेट क्रांति

01-08-2020

इंटरनेट क्रांति

निलेश जोशी 'विनायका' (अंक: 161, अगस्त प्रथम, 2020 में प्रकाशित)

कवि यह मोबाइल पर अटका है
छोड़ दिए मंच सारे अब
कविताएँ उसकी विचर रही है
अनंत व्योम के आँगन में
दिगंबर हो सीमा पार
नृत्यरत उसके शब्द हैं
हुआ दिल मेरा बाग़-बाग़ है
अब नहीं संशय और चिंताएँ
कि मेरे शब्द भूतपूर्व हो जाएँगे
और खनन विभाग की खुदाई के बाद ही
सतह पर उतर पाएँगे
जिनकी लिखावट पढ़ी जा सकेगी
चूहों, दीमकों, तिलचट्टों के खाए
आधे अधूरे खुरदरे पन्नों पर
यह संसार काग़ज़ की पुड़िया है
इसे एक दिन गल जाना है
लिखे शब्दों को मिट जाना है
काग़ज़ से विरक्त हो जाना है
कवि मुदित मन से बैठा है
नेट पर अपनी कविता के साथ
आओ हम मिलकर एक काम करें
किसी को व्हाट्सएप करें, किसी को ईमेल करें
किसी मित्र, पाठक या संबंधी को फ़ेसबुक पर खोजें
इंटरनेट पर खंगाले
देखें कि वह कहाँ है
विपुला विराट विस्तृत पृथ्वी पर
या कहीं आसमान में अटका है
कवि तो अब मोबाइल और
इंटरनेट पर अटका है
ग़ज़ब इंटरनेट की दुनिया है
बढ़ा रही रिश्तो में अजीब सी दूरियाँ है
साथ है घर के सभी सदस्य
पर सभी इंटरनेट में है व्यस्त
विदेशों की नातेदारी तो निभ रही
घर बैठे घरवालों की बातें चुभ रही
यही तो इंटरनेट का ज़माना है
यह क्रांति बन दुनिया पर छाया है
यह आज के इंटरनेट की है दुनिया
अच्छाइयों के साथ ढेरों हैं ख़ामियाँ।

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