हृदय के विचार

30-01-2016

हृदय के विचार

नवल पाल प्रभाकर

आज मेरी सीमाओं का
बाँध सा टूटा जाता है।
उफन-उफन कर यूँ समुद्र
लहरों में बिखर जाता है।

इसके साथ में आने वाले
लाखों शंख अगिनत सीपी
धूमिल होकर आँखों आगे
अँधेरा-सा छा जाता है।
उफन-उफन कर यूँ समुद्र
लहरों में बिखर जाता है।

नीले आसमान की भाँति
मन नदी में बढ़ कर पानी
किनारों के ऊपर चढ़ जाए
किनारा पक्का टूट जाता है।
उफन-उफन कर यूँ समुद्र
लहरों में बिखर जाता है।

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