ग़रीब के सपने

15-02-2020

ग़रीब के सपने

नीरज सक्सेना  (अंक: 150, फरवरी द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)

आज हाथ ज़रा तंग है
मज़बूरियों से जंग है
कल बाज़ार माफ़िक़ होंगे
दाम भी सब वाज़िब होंगे
तुम्हे हर सामां ला दूँगा
खुशियों से दामन भर दूँगा
ज़ेब में ज़रा पैबंद लग जाए
ख़र्च बेवज़ह का थम जाए
तुम फिर झोलियाँ देना मुझे
और बेटे...
जो तुम माँगोगे ला दूँगा तुझे


कल सारे सपने अपने होंगे
न पूछो कि कितने होंगे
बस उस कल का इंतज़ार करो
तब तक कुछ नए स्वप्न भरो
कल जीवन को रंगों से
दुनिया की नई उमंगों से
मैं कर दूँगा नवसूर्य उदय
और बेटे..
दिलवाऊँगा सब कुछ मैं तुझे


यह रात घनी पर छोटी होगी
ऊषा की जब दस्तक होगी
यह अँधियारे मिट जाएँगे
मिलके तब सब बाहर जाएँगे
है क्या ज़रूरत सब पता मुझे
बेटे तब..
दिलवाऊँगा सब कुछ मैं तुझे


कल की आस निराली है
बस आज ज़रा कंगाली है
यह बीते तो बाज़ारो को
दुनिया भर के त्योहारों को
मैं अपने घर ले आऊँगा
तुझसे ज़रूर मिलाऊँगा
तुम अपनी पसन्द बताना मुझे
बेटे फिर...
दिलवाऊँगा सब कुछ मैं तुझे


बस आज ज़रा सा धैर्य धरो
कल का थोड़ा इंतज़ार करो
आज हाथ ज़रा तंग है
मजबूरियों से जंग है
कल हम वक़्त मुताबिक़ होंगे
जेबों में दाम मुनासिब होंगे
बाज़ार भी अपने माफ़िक़ होंगे
और दाम भी सब वाज़िब होंगे
तुम फिर झोलियाँ दे देना मुझे
बेटे...
जो तुम माँगोगे ला दूँगा तुझे

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