डाल
नवल पाल प्रभाकरलहराई,
सकुचाई,
थोड़ी-सी कमर हिलाई
फिर भी वह अपने आपको
उस शैतान नटखट से
बिल्कुल न बचा पाई।
उस नटखट ने उसे
इस क़दर हिलाया।
टूट गया सारा बदन
सी..... मुँह से फूट पड़ा।
चेहरे की लालिमा को
ओर उसने बढ़ा दिया
फिर अचानक निकल गया
निढाल अकेली छोड़ वह।
तन कंपित था मन तृप्त
फिर से थी वह प्यासी
फिर से जीने लगी वह
लेकर अपने अंदर उदासी,
देखो पेड़ की डाल थी वह
और हवा ने कुम्हला दी।