आपने सुना?

 क्या?


कवि सम्मेलन में चलनी थी कविता
चल गए हाथ, हाथापाई हो गई
ये तो हद हो गई!

 

मैंने पूछा-
कवि था या कवयित्री..?
बताइये तो सही कौन था..?
वो बोले-
सुनने में आया है.. उनका ’शैडो’ था

 

तौबा तौबा..
ये तो अनहोनी हो गई
कविता कब से दारासिंह हो गई??

 

सम्मेलन अब तो अखाड़े होने लगे
कविता की जगह- हाथ पाँव चलने लगे

 

अब तो..
कवि सम्मेलनों में जाने से पूर्व
कवयित्रियों के नाम देखने होंगे

 

अगर उनका नाम है—
और उनके “वो” आ रहे हैं..
फिर तो भैय्या..
अब तो कवियों को अपने साथ
गार्ड रखने होंगे!!

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