भीड़ भरी सड़कें सूनी - सी लगती हैं
दूरी दर्पण से दुगनी सी लगती है
मेरे घर में पहले जैसा सब कुछ है
फिर भी कोई चीज़ गुमी सी लगती है
शब्द तुम्हीं हो मेरे गीतों, छन्दों के
ग़ज़ल लिखूँ तो मुझे कमी सी लगती है
रिश्ता क्या है नहीं जानती मैं तुमसे
तुम्हें देखकर पलक झुकी सी लगती है
सिवा तुम्हारे दिल नहीं छूती कोई शै
बिना तुम्हारे वीरानी सी लगती है
चाँद धरा की इश्कपरस्ती के मानिंद
मुझको 'तारा' दीवानी सी लगती है