जल, पूजा का जल, पीने का जल, नहाने का जल या फिर शौच के बाद बाँए हाथ मे लिया हुआ जल, सब एक ही है। एक से ही व्याप्त है चराचर सृष्टि; भेद उपजाता है केवल अंतर्मन की भावदृष्टि।