बड़े अच्छे लगते हैं

15-06-2021

बड़े अच्छे लगते हैं

कल्पना 'ख़ूबसूरत ख़याल' (अंक: 183, जून द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

मैंने शामें नहीं देखीं
सिर्फ सिंदूर देखा है
 
कभी किसी शाम 
जब जलता सूरज 
पानी में गिर बुझने लगे 
तब तुम मुझे ले चलो 
नदिया के किनारे जहाँ
सन्नाटा पसरा हो
सुनाई दे तो बस 
तुम्हारी धड़कने मेरी साँसें 
और वो पानी की आवाज़
मैं ज़ोर-ज़ोर से हँसूँ
इतनी ज़ोर से 
कि शाखों पर बैठी 
गौरैया उड़ जाएँ
और तुम मुझे
मेरा फ़ेवरेट 
वो पुराना गाना सुनाओ 
 
"बड़े अच्छे लगते है
ये धरती, ये नदिया 
ये रैना और 
तुम"

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