अपनापन
निलेश जोशी 'विनायका'जहाँ स्नेह मिल जाए सबको
संग मिले दो मीठे बोल
अनजाने रिश्ते बन जाते
अपनेपन का क्या है मोल।
अपनापन है शब्द जहाँ का
सबसे प्यारा मीठा अनमोल
पर अपनों ने कर दी इसकी
परिभाषा ही पूरी गोल।
सुरभित जीवन अपनेपन से
संबंधों की यह अविरल धारा
त्याग समर्पण से पुष्पित होता
अपनापन है सबसे न्यारा।
नींव हिल रही इस कलयुग में
संबंधों का हो रहा व्यापार
प्रीत की रीत अब हुई पुरानी
अपनापन भी हुआ लाचार।
घायल मानवता झूठे रिश्तों से
मतभेदों की होती बौछार
संस्कारों का गला घोट कर
अट्टहास करते सब गद्दार।
दया प्रेम निर्मल निर्झर मन
जग में जीवन का आधार
पीर पराई को जो समझे
अपनापन होता साकार।
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