आत्मपीड़ा

03-05-2012

आत्मपीड़ा

मुकेश पोपली

उम्र के
इस पड़ाव पर
आकर
मैं तुम्हें
हर पल
अपने पास
रखना चाहता हूँ
तुम
कोई मुद्रा तो हो नहीं
जिसका
उपभोक्तावादी संस्कृति में
अवमूल्यन
होता चला जाएगा।

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