आत्मपीड़ा
मुकेश पोपलीउम्र के
इस पड़ाव पर
आकर
मैं तुम्हें
हर पल
अपने पास
रखना चाहता हूँ
तुम
कोई मुद्रा तो हो नहीं
जिसका
उपभोक्तावादी संस्कृति में
अवमूल्यन
होता चला जाएगा।
उम्र के
इस पड़ाव पर
आकर
मैं तुम्हें
हर पल
अपने पास
रखना चाहता हूँ
तुम
कोई मुद्रा तो हो नहीं
जिसका
उपभोक्तावादी संस्कृति में
अवमूल्यन
होता चला जाएगा।