आँसुओं की जगह

21-10-2017

आँसुओं की जगह

डॉ. विनय ‘विश्‍वास’

आँसू तब से रहते हैं आँखों में जब से रोशनी

एक अरसे तक न आँए तो समझ लो
सूख रही हैं वे

अपने छौनों को अयोध्या लिवा ले जाने
भरत के साथ आई तीनों माँओं को राम ने देखा
तो सबसे पहले कैकेयी की आँखें पोंछीं…
उत्तरीय भर गया आँसुओं से जिनको देख
मोतियों में चमक न रही

किसी की भरी आँखें पोंछने को
आस्तीन के न होने का दुःख
मीर की आँखों तक आया
और बहने लगा शे’अरों में

अपने साए ने समझने से इनकार कर दिया तो
आँखों में तैरते बोले- चुप हो जा… चुप्प
हम हैं ना

बच्चे को अनुशासन ने जड़ दिया तमाचा
तो भी चले आए कहते-
हाँ! हम हैं निर्बल के बल

माँ को छोड़ गए बच्चे तो रहने आ गए साथ
कभी नहीं आए तो लाल रहने लगीं पिता की आँखें

कहकहों की पॉपुलैरिटी के इस दौर में भी वे
रहते चले आ रहे हैं सूखे के विरुद्ध
जैसे अपनों की डॉट में रहता है अपनापन
… या लौ में
दीया।

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