आज फ़ैशन है
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'1222 1222 1222 1222
लतीफ़ों में रिवाजों को भुनाना आज फ़ैशन है,
छलावा दीन-ओ-मज़हब को बताना आज फ़ैशन है।
ठगों ने हर तरह के रंग के चोले रखे पहने,
सुनहरे स्वप्न जन्नत के दिखाना आज फ़ैशन है।
दबे सीने में जो शोले ज़माने से रहें महफ़ूज़,
पराई आग में रोटी पकाना आज फ़ैशन है।
कभी बेदर्द सड़कों पे न ऐ दिल दर्द को बतला,
हवा में आह-ए-मुफ़लिस को उड़ाना आज फ़ैशन है।
रहे आबाद हरदम ही अना की बस्ती दिल पे रब,
किसी वीराँ ज़मीं पे हक़ जमाना आज फ़ैशन है।
गली कूचों में बेचें ख़्वाब अच्छे दिन के लीडर अब,
जहाँ मौक़ा लगे मजमा लगाना आज फ़ैशन है।
इबादत हुस्न की होती जहाँ थी देश भारत में,
नुमाइश हुस्न की करना कराना आज फ़ैशन है।
नहीं उम्मीद औलादों से पालो इस ज़माने में,
बड़े बूढ़ों के हक़ को बेच खाना आज फ़ैशन है।
नहीं इतना भी गिरना चाहिए फिर से न उठ पाओ,
गिरें जो हैं उन्हें ज़्यादा गिराना आज फ़ैशन है।
तिजारत का नया नुस्ख़ा है लूटो जितनी मन मर्ज़ी,
'नमन' मजबूरियों से धन कमाना आज फ़ैशन है।
1 टिप्पणियाँ
-
बहुत उम्दा ग़ज़ल आदरणीय! धन्यवाद।